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बर्दाश्त नहीं पहरा मेरी नजाकत पर

Jyoti yadav 16 Jun 2023 कविताएँ समाजिक बर्दाश्त नहीं पहरा मेरी नजाकत पर 9182 0 Hindi :: हिंदी

अपनों का ख्याल रखते रखते 
अपना ख्याल रखना भूल गई
पता नहीं क्यों 
अपनों के लिए ही मैं इतनी फिजूल हुई

अब तो मेरे अपने ही मुझे पागल कहते हैं इतराते है हमसे, हम से ही उलझते हैं

हर रोज नया नया नाम देते हैं
कुछ नहीं होगा हमसे, पहचान देते हैं

मेरी बातें अब उनको शोर लगती हैं
गुरूर था जिस पर उन्हीं को मैं कठोर लगती हूं

ताने से अब हर सुबह की शुरुआत होती है
बीत गया खुशियों का वह कुछ दिन अब तो दुखों की ही प्रभात होती है

आय खुदा तुझ से इल्तजा है इंकार मत करना
तू तो मेरा है तू हमसे कभी तकरार मत करना

कह देना मेरी मां से
 मजे में हूं बस उनके थपकियो  का इंतजार है
और मेरे बाबा से कहना गौर करें मेरी शराफत पर
रहम करे मेरे इबादत पर
बर्दाश्त नहीं है पहरा मेरे नजाकत पर

दुआ मेरी अब कुबूल करें
जो कल तक फिजूल हुई
अपनों का ख्याल रखते रखते 
अपना ख्याल रखना भूल गई

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