संदीप कुमार सिंह 01 May 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाजिक हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4510 0 Hindi :: हिंदी
तुझ सा नादान कोई सारे जमाने में नहीं इल्म ना थी तुझे, ना ही कोई अंतर्ज्ञान। तूं समझता रहा बहुत कुछ, पर थी हकिकत कुछ भी नहीं। जब मैं ने गौड़ किया, सच्चाई कुछ और निकली। तूं डरता रहा, मूर्खता तूं करता रहा। अन्त तक भी तूं न सम्हला, क्योंकि सच्ची समझ ना थी। तूं कच्चा था, और कच्चा ही चला गया। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....