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आदमी के न सच्चे कर्म

Neetesh Shakya 01 Apr 2024 कविताएँ धार्मिक आदमी के न सच्चे कर्म #neeteshshakya #neetesh Kumar #google 2919 1 5 Hindi :: हिंदी

आदमी बना... है, शर्म बेशर्म
फूटी है किस्मत ना सच्चे कर्म|
दौलत के आगे प्यार भुलाए|
अपनों से रिश्ता पैसा छुड़ाए||1||
रिश्तेदारों को देख करते भ्रम|
आदमी बना... है, शर्म बेशर्म|

कपड़े तन पर छोटे चलते हैं|
दर्जी बनाने से झिजकते हैं||2||
लड़कियों में अब ना रही है शर्म|
आदमी बना... है, शर्म बेशर्म|

पढ़ने में अब मन नहीं लगता|
लड़का लड़की में चक्कर चलता||3||
सही ना शिक्षा गलत कदम|
आदमी बना... है, शर्म बेशर्म|

कलमकार ने हिम्मत जुटाई|
आज तक लड़के ने, न लड़की भजाई||4||
इसमें लड़कों का ना कोई दोष-कर्म|
आदमी बना... है, शर्म बेशर्म|

****Neetesh Shakya****

Comments & Reviews

Akash Shakya
Akash Shakya Nice word

2 weeks ago

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