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अमावस्या-जिंदगी की काली छाया

Archana Singh 08 May 2023 कविताएँ अन्य 5291 0 Hindi :: हिंदी

यूं तो कई बार आए - गए तेरे शहर से  ,
पर पैरों में कभी जंजीर सी ना लगी ...!

आज यूं लगा बढ़ते कदम ,
 कई बार रुक से गए ...!

शहर वही , गलियां वही , 
घर वही , लोग भी वही ,
बस नजर और नजरिया बदल गए ...!

कल तक थे जो हमसफर मेरे ...!
साया बनकर जो साथ चले ...!

ढूंढती थी जिसकी नजरें हर पल हमें ....!
 आज वो गुमनामी में कहीं खो गए ...!

 अमावस्या बनाकर अर्चना को
 प्रवीणता वो ले गए ....!

 जाने समय से पहले क्यों ...
मेरा सूरज ही अस्त हो गया ...!

 हम सोचते ही रह गए , और 
जिंदगी अमावस्या की काली छाया हो गई...!

धन्यवाद दोस्तों 🙏🙏💐💐

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