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तुम किसी विधा में ढह जाओ

DIGVIJAY NATH DUBEY 19 May 2023 कविताएँ समाजिक #संघर्ष 7708 0 Hindi :: हिंदी

लाल गुलाब 
पैर से सिर तक सजा लिया है 
काटो का बड़ा अंबार 
उसके ऊपर खिला दिया है 
रंग महकता फूल गुलाब
इसको तेरा अभिमान कहूं
या कहूं सुरक्षा की तैयारी
इसको अपना दुर्भाग्य कहूं
या कहूं विधा को यही न्यारी 
चाहों दिशाओं नाम तुम्हारा 
सजते हर त्योहारों में 
कोई नेता की रैली हो
या हो वीरों की शोभा में 
प्रेम प्रसंग का रूप हो तुम
तुम बिन दिल में अज्ञान भरा 
कभी किताबों में रहकर के
प्रीतम का संसार भरा
महिमा तेरी बहुत है लेकिन 
नाराजगी यही रहती है
कैसे तेरे सारे तन में
काटो की शोभा रहती है 
पर सीख यही दे जाते हो
कितने प्यारे तुम हो जाओ
पर अगर तेरा संरक्षण न हो 
तुम किसी विधा में ढह जाओ
तुझे तोड़ने से पहले 
कवि सोच रहा है बारंबार 
तेरी सुंदरता पाने को 
ढूंढ रहा है कई विचार 
इतने सारे कष्टों में भी 
सभी तुझे ही पाल रहे हैं
सह लेंगे काटों की पीड़ा
तेरी मूरत पहचान रहे हैं।।


दिग्दर्शन !

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