Rambriksh Bahadurpuri 25 Dec 2023 कविताएँ समाजिक #Rambriksh Bahadurpuri #ambedkarnagar poetry #samajik kavita 6691 0 Other :: Other
कविता -सियरा के देहिंया पर बघवा कै खाल बाय सियरा के देहिंया पर बघवा कै खाल बाय कहां गइल सब नाता रिस्ता ,भइल बहुरंगी चाल बाय घूम रहे हैं दुष्ट भेड़िया,नोचत कचोटत खाल बाय युग समाज सब भइल बा अंधा,अंधा इ सरकार बाय गांव गांव घर घर में मचल बा ,धंधा कै बाजार बाय मांग के चंदा बनत हौ मंदिर, शिक्षा होत बेहाल बाय। रोजी रोटी सब गायब हौ, महंगाई मारत जान बाय कैइसै चलैय खर्च अब घर कै, मुखिया होत हैरान बाय गंगा यमुना कै धरती पर, पानी बिकत बाजार बाय भूख प्यास कै चिंता केका,निकलत जात प्राण बाय चाल चलन सब ताख पे रखि कै,नंगा होत संस्कार बाय चिमनी कै धूंआ जस मानव,गंदा करत समाज बाय वातावरण माहौल बिगाड़त, आर्केस्ट्रा के परिधान बाय आज मोबाइल सब घर घर कै,होतै शउक सिंगार बाय खोलतै गूगल एड दिखावैं,अर्धनंगी बदन उघार बाय कौन रखावै घर कै बिटिया, दुपट्टा में बतियात बाय एक न मानय बात पिता की ,मम्मी से रिसियात बाय गली गांव घर शहर नगर कै,सबकै इहवै हाल बाय। रचनाकार रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर उत्तर प्रदेश
I am Rambriksh Bahadurpuri,from Ambedkar Nagar UP I am a teacher I like to write poem and I wrote ma...