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सुख दुख की जीवन गाथा-कैसे ये पार उठाता

Sudha Chaudhary 01 Jul 2023 कविताएँ अन्य 9782 0 Hindi :: हिंदी

सुख दुख की जीवन गाथा
कैसे ये पार उठाता
मेरे पलकों का सावन 
बिन बात बरस जाता।

आते हो जीवन बसन्त तुम
निश्छल, मदमाता गाते
ये पथरायीं प्यासी आंखें
बिन बात सजल हो जाते।

हंसते हैं कह कह के
क्यों संसार सरल हो
जीवन और मरण में
किस भांति प्रबल हो।
 
अलसाई आंखो पे
पलकों के बिछोने छाये
जीवन में जानें क्यों 
दुख बार बार आये।

सांसें यूं छीन रहीं हैं
प्राणों से कौतूहल
दिन तो हुआ है साथी 
रातें हैं निष्ठुर समतल ।

जितनी दबी वेदना है
उतना अनुराग कहां है
मानो, तुम विश्व विधाता 
संसार का भार यहां हैं।

तड़ित चांदनी के जैसे
खिलती है जो कलियां
मधुकर भी मिलने आ जाते हैं
खोकर अपनी गलियां।

सुधा चौधरी
बस्ती

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