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ज्ञानमणि

Ashok Kumar Yadav 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 74110 0 Hindi :: हिंदी

कविता- ज्ञानमणि

कोई बन सपेरा नचा रहा है मुझे ?
अपनी बीन के सुमधुर धुन पर।
लहराकर, झूमकर नाच रहा हूं,
जादुई आवाज को सुन-सुन कर।।

मेरी चारों ओर फैलाया मंत्र जाल,
मुझे कोड़ा से पीट रहा है प्रेत दूत।
तू ही रास्ता दिखाता है विश्व को,
निकालो मस्तक से जो है अद्भुत।।

मेरे पास है दिव्यमान ज्ञानमणि,
जन मन को करता है प्रकाशित।
छीनकर मुझसे ले जाएगा वंचक,
जिसे दिया था गुरुदेव कर्मातीत।।

फिर क्या रह जाएगा जीवन में ?
इसे खोने के बाद तमस-ही-तमस।
बन अंधा टकराऊंगा शिलाओं पर,
सिर पटक करूंगा आत्म सर्वनाश।।

कोई छीन नहीं सकता मेरी प्रतिभा ?
बदलूंगा अपनी रूप,मैं हूं इच्छाधारी।
कर्म करके प्रभु से मिला है वरदान,
जय आशीष दिया है भोले भंडारी।।

कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़।

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