DINESH KUMAR KEER 24 May 2023 कविताएँ समाजिक 5525 0 Hindi :: हिंदी
बेटियाँ... बाबुल के घर से चली जाती है... ये बेटियाँ बहुत सताती हैं... फिर कहाँ लौट करके आती है... ये बेटियाँ बहुत सताती है... लोरियां गा के मां सुलाती थी... रोने लगती तो वो हंसाती थीं... उंगलियां थाम कर चली जब भी... रूठजाती कभी मनाती थी... दिल मेबेटियाँहै मुस्करातीं है... ये बेटियां बहुत सताती है... सिर्फ खाली मकान दिखता है... और उजाला यहां सिसकता है... देख कर आने वाले कहते हैं... वही मासूम जहां दिखता है.... याद उनकी बहुत रुलाती हैं... ये बेटियां बहलुत सतातीर है... बाबुल के घर से चली जाती हैं... ये बेटियाँ बहुत सताती हैं...