Anonymous 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक आंसुओं का रूप, Emotional Hindi Poem, 108942 0 Hindi :: हिंदी
कवि आंसुओं को कहता है- आंसुओं तुम ऐसा ना करो। ह्रदय कांप उठता है।। इन लटकती हुई बूंदों से । चेहरा खराब दिखता है।। यह कैसी तुम्हारी मानता है? । फिर कभी तुम बोलोगे। क्या मुझे यह पहचानता है।। पीड़ा देते हो तुम, इस बेचारे शरीर को। साफ-साफ बोल दो, इस सच्चे फकीर को।। स्वागत तो होता नहीं, क्यों आते हो। शर्म थोड़ी है नहीं, बेशर्म बन जाते हो। अमृत रूपी रक्त को पानी बना देते हो।। दृश्य थे जो साफ, धुंधले बन गए। लगता है दुखों के दरवाजे खुल गए। बोलता है कोई आप पागल बन गए।। छोटे-छोटे आंसुओं। ऐसी क्या कला है?।। विनाश हुआ इतना। क्या परमाणु बम चला है?।। आंशू कहते हैं- गहरे चुभे कांटे बाहर ले आए। बोल रहे हो बेशर्म बिन बताए। कहां थे आप, जब हम खुशी के आए हैं।। सब कुछ स्वयं करते हो। उलाहना हमें देते हो।। आया याद दुख को। वह ले गया सुख को।। होते ना अगर हम, इन नयनों में। फिर कैसे रोते, बैठकर किसी कोने में।। तेज धार है उनकी। मौत का पहरा रहता है।। हमारी क्या औकात है। स्वयं खुदा भी डरता है।। कर दिया बर्बाद हमको। बिन सूझबूझ के स्वामी ने।। खरीद लिए जाओगे। काल की नीलामी में।। हम तो चले जायेंगे। लौट कर ना आएंगे फिर किसी अपने को। रोते नजर न आओगे।। कविता का सार- इस कविता में कवि आंसुओं को कहता है कि तुम्हारे आने से चेहरा बदसूरत हो जाता है और फिर तुम इस चेहरे को भूल जाते हो। आंसुओं तुम इस शरीर को बहुत पीड़ा देते हो। तुम्हारा इस चेहरे पर बिना बुलाए आना शर्म की बात है। तुम अमृत के सम्मान रक्त को पानी बना देते हो, आंखें भी सही ढंग से देख नहीं पाती है। मनुष्य पागल बन जाता है। तुम्हारी इस शक्ति को देखकर ऐसा लगता है कि परमाणु बम जितना विनाश हुआ है। आंसू लेखक को कहते हैं - कि हम आपके दुख को पानी बनाकर इस शरीर से बाहर ले आते हैं। आपने पहले कभी कुछ नहीं कहा, जब हम खुशी के साथ आते थे और आज आप हमें उलाहना दे रहे हो। आपके बुरे कर्मों के कारण दुख बढ़ चुका है और हम इसे मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। हमारे बिना मानव अपनी आंतरिक पीड़ा को बाहर नहीं निकाल सकता है। परमात्मा भी इस दुख से डरते हैं। हम आपको अपना स्वामी मानते हैं अगर आपको इस बात का ध्यान नहीं है कि हम आपके दुखों को कम कर रहे हैं तो आप अवश्य ही एक दिन मौत के काल के द्वारा खरीद लिए जाओगे, हम तो आज जा रहे हैं लेकिन फिर कभी रो नहीं पाओगे। कविता का भाव समाज के उन लोगों से जुड़ा हुआ है जो पहले अपनी गलतियों को स्वीकार ना करते हुए दूसरों को उसका जिम्मेवार ठहराते हैं।