Sudha Chaudhary 29 Jun 2023 कविताएँ अन्य 7311 0 Hindi :: हिंदी
आज आओ, मन की घाटी में चलें। जो जहां रुक आए उससे फिर मिलें। साथ का साथी नहीं विश्वास से जो जागता जो उड़ानों की पहुंच से पार मुझको थामता। प्राण का संकल्प ले रात दिन में हम फिर मिलें। आओ मन की घाटी में चलें। थामता पतवार जो नाव डूबीं पार जो उसके जीने की कला में थम रहा संसार जो भोर की उस भूमि पर सावन घटा में हम चले। आज आओ मन की घाटी में चलें। है जहां आनन्द की रूपरेखा मोह का मधुमास छाया है जहां पर फिर सिन्दूरी क्षितिज से भाव जागे मिलन के । जहां मुक्त हों अन्तरव्था फिर चले। आज आओ , मन की घाटी में चलें। सुधा चौधरी बस्ती