संदीप कुमार सिंह 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता पाठकों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी। 86663 0 Hindi :: हिंदी
आरजू की हद हो गई, विचारों ने संग्रह में धावा बोला। चाहतों के फूल ने खुशबू बिखेरी, हद यह खेल मजाक हो गया। रंग_बेरंग सी मन हो गया, उलझनों ने भी हद कर दी। पर दिल की आह, अफसोच की तर्ज ले ली। मायूस हो यूं बेरंग हो गया, फिर अनुभव के तीर ने, सारे किस्से जगा दिए। प्रमसत्य का भान कराया, मनो में नवजीवन का संचार कराया। फिर तो गजब यह राह हो गया, जिन्दगी फूलों का सौगात हो गया।
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....