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अब कहाॅं पर आ गए-क्या पता हम कब चले थे

Rambriksh Bahadurpuri 27 Nov 2023 कविताएँ समाजिक Rambriksh Bahadurpuri #ab Kahan per aa gayen kavita #Ambedkar Nagar poetry #jeevan aur mrityu per kavita 11095 0 Hindi :: हिंदी

अब कहाॅं पर आ गए 

क्या पता हम कब चले थे
अब कहां पर आ गए
बचपन गया बीती जवानी
झुर्रियां भी छा गए,
देखते-ही-देखते जो
आये थे वो जा रहें 
ना समय ना दिन किसी की
जान कोई पा रहे। 

जन्म है निश्चित यहां पर
मृत्यु का न है पता
कब कोई हो दूर हमसे
साथ जाता छूटता, 
रह जाते हैं कर्म अपने
याद करने के लिए
न कोई पहचान होगी 
गर मरे ना कुछ किए। 
 
फिर न समझता क्यों कोई
साथ न कुछ जाएगा 
फिर तड़पता हाथ अपना
मलता  रह जाएगा, 
वक्त है अब भी सभल जा
चल नेकी की राह पर
अन्यथा न कर पाएगा 
कुछ यहां पर चाह कर। 

साथ जीने के लिए हर
कोई मिल जाएगा
पर साथ चलने के लिए
कोई ना आएगा,
ज़िंदगी को साथ जी लें
बांट अपने प्यार को
दो पल की जिंदगी में
जीत ले तू हार को। 

जिंदगी लम्बी समझ कर
हम यहां तक आ गए
बचपन गया बीती जवानी
झुर्रियां भी छा गए,
ना काम करता हाथ अब
न संभलता पांव ही
आंख से दिखता नहीं कुछ
बाहर भीतर ठांव ही। 

तन बदन अब कांपते हैं
सांस भारी हो चले
न रहा जीवन का चाहत
और भी अब क्या कहे,
अंतिम घड़ी अंतिम समय
सामने अब आ गए
बचपन गया बीती जवानी
झुर्रियां भी छा गए। 


         रचनाकार
     रामबृक्ष बहादुरपुरी
अम्बेडकरनगर उत्तर प्रदेश

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