Sudha Chaudhary 17 Jul 2023 कविताएँ अन्य 11293 0 Hindi :: हिंदी
तुम कही बुला न सके हम कहीं आ ना सके भावनाओं से भरी भीड़ थी जिसको स्वयं से मिटा ना सके। कदम लेखनी बनकर चलते गए आशा और इच्छा पनपते गये। हाथों को स्याही ने रंग सा दिया अपना तुम्हें हम बना ना सके। काली घटाओं ने मुझको आ घेरा बरसते बरसते हो गया सवेरा शलभ से तड़पते रहे रोशनी में तुम से यहां तक बता ना सके। चांदी की कीमत पर मांगा है सोना बहाने बहुत कर चुके अब तो हो ना शायद तुम्हें भूल जाना ही बेहतर कि पत्थर से मुख को छुपा ना सके। सुधा चौधरी बस्ती