कविता केशव 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक ज्ञानी और अज्ञानी की असली पहचान 70942 0 Hindi :: हिंदी
इस संसार में खुद को ज्ञानी कहने वाले बहुत अज्ञानी मिल जाएंगे--- भेष बदलकर नए-नए कई रूप धारी बन जाएंगे। कोई नंग धड़ंग हो फिरता कोई चिमटा बजाता है, कोई खप्पर खोपड़ी लिए हवा में त्रिशूल चलाता है, कोई रमाएं बैठा है धूनी माथे पर बड़ा सा तिलक लगाकर, कोई पंचाग्नि तप करता है घंटा-घड़ियाल बजा कर, कोई खुद को कहे दैव्तवादी कोई अद्वैत वादी कहता है, कोई कहें निरंकारी है हम कोई सनातनी बनता है, कोई सुनाए कबीर वाणी तो कोई गुरु वाणी पढ़ता है। सबके अपने-अपने धर्म हैं ये सबके अपने अपने है काम! एक ईश्वर में सब है समाएं अल्लाह कहो या राम। आत्मज्ञानी जो होता है उनको इन आंडबरो की जरूरत नहीं! दिखावा वहीं करता है, जो खुद मे है पूरक नहीं। जय जयकार कराएं जो खुद की वह अज्ञानी,ज्ञानी नहीं होता है, आत्मज्ञानी खुद को सबमें---- और सबमें खुद को देखता है तेरा-मेरा, अपना-पराया, मोह- ममता ये धन और माया सबमें देह-अभिमान फंसाता है, सत्य रूप को जिसने है जाना वो अंहकार मुक्त हो जाता है।। कविता केशव......