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भारत-विविध रूप होते जहां पर विविध जहां की भाषा

Rohit 10 Jul 2023 कविताएँ देश-प्रेम 5648 0 Hindi :: हिंदी

विविध रूप होते जहां पर,
     विविध जहां की भाषा।
विविध विविध हैं भेष उनके,
     विविध वहां के वासा।

चट्टान से मजबूत हैं नर,
       पीछे नहीं नारी जहां की।
है नाम हिंदुस्तान उसका,
        अद्भुत है मिट्टी जहां की।

आजाद चन्द्र शेखर,
        पनपे जहां की मिट्टी में।
पनपी जहां लक्ष्मीबाई,
     शत्रु कभी न टिक पाया।
है वीरता यहां की मिट्टी में।

कबीर जैसे ज्ञानवान,
   चाणक्य जैसे बुद्धिमान।
जन्मे इसी धरा पर,
    जिनसे शुशोभित हिंदुस्तान।

भिन्न भिन्न हैं मीत इसके,
    भिन्न भिन्न हैं गीत।
भिन्न भिन्न संगीत यहां का,
    भिन्न भिन्न हैं रीत।

कहीं रंग मिलता है सांवला,
      कहीं रंग गोरा।
कहीं कहीं काला रंग फैला,
     जैसे कोई भौंरा।

हैं ज्ञानवान बुद्धिमान यहां पर,
     एक एक आवासी।
बनते एक दूजे के सहायक,
    एक एक भारतवासी।

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