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बिना दीप के जलना चाहूं

Sudha Chaudhary 28 Jun 2023 कविताएँ अन्य 7780 1 5 Hindi :: हिंदी

बिना दीप के जलना चाहूं।

बिना साथ के लड़ना चाहूं।
रातें हैं बेजान मगर
बिना रात के रहना चाहूं।

खुशियों की भरमार बहुत है
फूल हमारे पास बहुत है
हाथों की छोटी रेखा से
अन्तिम क्षण तक लड़ना चाहूं।

कुछ खोकर अंजान हुई 
जीवन की सच्चाई से
बेहतर से बेहतर कर जाऊं
यह छोटी पहचान मेरी।
इन्सानों की बस्ती में
इन्सानों सी रहना चाहूं।

बिना दीप के जलना चाहूं
बिना साथ के लड़ना चाहूं।


सुधा चौधरी
बस्ती

Comments & Reviews

संदीप कुमार सिंह
संदीप कुमार सिंह बहुत खूब, लाजवाब

10 months ago

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