Manisha Singh 30 Mar 2023 कविताएँ देश-प्रेम Poetry, Hindi, New, #Deshprem 20616 0 Hindi :: हिंदी
खो जाती हूँ मैं कभी-कभी गुज़रे दिनों के ख्यालो में ... क्या होता अगर जी रहे होते हम आज भी अंग्रेजो के ज़माने में ... चाबुक खाते, धूल फ़ाख्ते घर भरते उनके अपने कमाए दानो से.... बेचैन करती देशप्रेम की वो आवाजें जो आती थी जेल की दीवारों से... जब मार लात गुलामी को निहत्थे भी हम कूद पड़े थे, जंग के मैदानों में... जला कर लो दिलो में आज़ादी की क्या खूब किया तिरंगे के दीवानो ने... बढ़ता जाता पद हमारा देखो जाकर आज जमाने में ... खो जाती हूँ मैं कभी-कभी गुज़रे दिनों के ख्यालो में... क्या होता अगर जी रहे होते हम आज भी अंग्रेजो के ज़माने में | |
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