संदीप कुमार सिंह 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक लोगों के लिए प्रेरणा से भरपूर मेरी कविता जिसका शीर्षक ऊपर दिया हुआ है। 49096 0 Hindi :: हिंदी
नहीं बोलो फिर भी हकीकत, बयां करता है चेहरा। चेहरा एक दर्पण है, चेहरा एक दर्पण है। जिसमे मैं अपने आप को झांकता हूं, समझता हूं_समझता हूं। मैं और तुम दो हूं पर वास्तव में, मैं तेरा चेहरा_तूं मेरा चेहरा। मैं तुझ में झांकू_तू मुझ में झांको, अरे झांक_झांक में, एक _ दूसरे में खो जाऊं। चेहरे ने चेहरे को चिहार कर देखा, फिर एक चेहरे में दूसरा चेहरा खो गया। जमीं _आसमां में खो गया, एक चेहरा दूजे चेहरा में खो गया। दो चेहरा एक हो गया, चेहरे ने चेहरे को चिहार कर देखा तो ऐसा हो गया। गजब की उन्माद था, चेहरे को एक चेहरे की तलाश थी, कई वर्षों से तलाश जारी था, दुनिया के भीड़ में, फिर भी वो चेहरा नहीं मिल रहा था। भटकन था _फिर भी एक इन्तजार, उम्मीद से की जा रही थी । वर्षों बाद खोज समाप्त हुई, फूलों सा निखार लिए, इस चेहरे को, एक चेहरा, दूध _मलाई सी वो, हसीन चेहरा मिल गया। चिंटू भैया
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....