Shreyansh kumar 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद 500 30157 0 Hindi :: हिंदी
वह दारूण दर्शय देख- देख कर आंखे नम हो रही है, मेरे दिल में उनके लिए दया की लहरें उमड रही है, कल तक थे जो आजाद परिंदे वो आज गुलामी में जकड रहे है, अपनी आजादी पाने को अपना वतन छोड़ रहे है।। कुछ आतंकी हुऐ इकट्ठे ओर उनका सब कुछ उन से छीन लिया, कल तक थे जो आसंमा में आजाद परिंदे आज उन आतंकीयों ने उनके परों को भी कतर दिया, कुछ लोगों ने जब भरी उडान आजादी की तो उनको मौत के घाट उतार दिया, कुछ लोगों की सोच ने आज एक वतन का कत्ले आम किया ।। जब देखता हूँ वह दर्शय मैं तो आंखे भर आती है, उस माँ की बेबसी जो अपनी बच्ची को फेंककर उसके जीने की भीख मांगती है, आतंकी आते है घर में ओर माँ-बहिनों की जबरन आबरू लूट कर ले जाते है, अपनी आंतकी दुनिया के जुर्म वाले कानून उन पर तोफ जाते है।। नयनों से वह दर्शय देखकर अश्रु की जल धारा निकल रही है, उन आतंकीयों के जुर्म से बचने को वहाँ की जनता अपने वतन को छोड़ रही है, कुछ इंसानों की आज इंसानियत कत्ले आम हो रही है, उन आतंकीयों के जुर्म से आज उस वतन की धरती छलनी हो रही है, एक वतन की जमीं आज खुले आम नीलाम हो रही है।।