संदीप कुमार सिंह 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक मेरी के कविता प्रेरणा से भरपूर है। आप पाठक गण जरूर लाभान्वित होंगे। 49014 0 Hindi :: हिंदी
एक बार मेघ आ रही है, तो एक बार धूप आ रहा है। यह आंख_मिचौली का खेल, सुबह से चल रहा है। मुझे लगता आज दोनों में ठनी है, एक दूजे को हराने का, भरसक प्रयास किया जा रहा है। सिलसिला लगातार जारी है, हम सभी देख ये नजारे, खूब आनन्द उठा रहे हैं। खेल_खेल में, अपनी_अपनी मनवाने की जिद्द है। ऐसा लगता मानो, धूप कह रहा हो की, अभी मेरी जरूरत और मेघ कह रही हो की, अभी मेरी जरूरत है। मुझे तो ये दृश्य मेरे मन को छू गया, मैं भी ऐसे ही यह खेल खेलूं। और कभी प्यार भरी , बारिश का बूंद बन जाऊं तो कभी इकरार भरी धूप बन जाऊं। चिंटू भैया
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....