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गुब्बारे हों गुब्बारे हों-उड़ते रहो सदा हंसते हुए

Shivani singh 09 Jul 2023 कविताएँ अन्य 6524 0 Hindi :: हिंदी

गुब्बारे हों, गुब्बारे हों,
उड़ते रहो सदा हंसते हुए।
बादलों की तरह आजमाओ आसमान,
जीवन के रंगीन सपने पहनते हुए।

बनो खुद उमंग का एक पल,
मधुर गीतों की झूमती धुन पर।
प्रकृति के रंग भरो अपनी आँखों में,
चमकती हुई दूरगामिनी के लिए तरस पर।

ऊँचा उड़ान भरो स्वप्नों की ओर,
मधुर मौसम के झूले पर सवारी करो।
खो जाओ तन को और मन को स्वतंत्र,
गुब्बारों की बाँहों में सांझ बिताएं प्यारी।

जहां नदियों की लहरों में लहरते हों,
वहां अपनी बाहों को खोलो।
आकाश में संगीत की ताल सुनो,
प्रेम की मिठास को निभाओ खोलो।

गुब्बारे हों, गुब्बारे हों,
उड़ते रहो सदा हंसते हुए।
आपके सपनों की ऊँचाई पर,
खुद को पाइए जीने का आदान-प्रदान करते हुए।

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