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"हमारे बचपन के दिन "

Shreyansh kumar jain 30 Mar 2023 कविताएँ बाल-साहित्य 54375 0 Hindi :: हिंदी

मिट्टी के खेलों में महल हमारा बनता था, 
वह कितना अच्छा बचपन हुआ करता था।
दादी, नानी से परियों की कहानी सुनी जाती थी, 
पता नहीं चल पाता था हमे नींद कब आ जाती थी।
स्कूल जाकर वापस आना यह तो चलता रहता था,
हर समय हमारा खेलों में मन लगा रहता था।
फिक्र नहीं थी कुछ भी हमको, ना कोई तनाव था,
पापा-मम्मी, दादा-दादी, रिशतेदारों का ना कोई दबाव था।
अपनी मस्ती मे मस्त होकर हम बेफिक्र घूमा करते थे,
बिना गाडी के भी हम पूरा गांव नापा करते थे।
मिट्टी की वो सोंधी खुशबु जब सावन मे आया करती थी,
हर बच्चे के दिल मे उसकी भावना खोती रहती थी।
नाले पर पत्थर रखकर जब हम बारिश का पानी रोका करते थे,
हम उसको हमारे जमाने का स्विमिंग पूल कहते थे।
गर्मीयों की छुट्टियों में नाना के जाना हमेशा याद रहता था,
मोबाइल के बिना भी जीना कितना अच्छा लगता था ।
दादी की कहानियाँ सुनना छतो पर बिस्तर बिछोना यह सब जीवन का एक हिस्सा था,
ना कोई लडाई थी,ना कोई झगड़ा था, हमे तो अपनी मस्ती मे मस्त हमेशा रहना था।
वह बचपन कितना अच्छा हुआ करता था ।

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