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जीतने की ज़िद्द

Abhinav chaturvedi 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक जीतने की ज़िद्द 51777 0 Hindi :: हिंदी

 वो हार-हार नही जिसमे जीत परास्त न हो,
वो व्यक्ति इज्ज़तदार नही जिसमे मान-सम्मान न हो,
हर घड़ी की सताईं यादें, बातों में तक रोती हैं,
हार के मैदान में खड़ी ज़िन्दगी जब तक सोती है।
वो नींद-नींद ही नही, जब तक जीत नही हो झोली में–
दिल मे कांटें चुभते रहते हैं, लोगों के व्यंगात्मक की बोली से।
ज़िद्द जीत की जज़्बातों से जब ज़रूरी हो जाती है,
तब ज़िन्दगी किस्मत के साथ मिलकर हमको हार-जीत के मैदानों में ले आती है।
ठीक ! हर चाह को रखते हुए मैदानों में आना है।
हार-जीत की सीढ़ी पर खुद को खड़े कर आजमाना है,
हार गए, कोई बात नही कदम अड़े रहेंगे,
जीत गए तो हर तरफ से वाहवाही-आगे हर सीढ़ी को पार करेंगे।
कोई हमे क्यों तौले, ये हमारी ज़िन्दगी है, हम अपने तरीके से अपने सपने साकार करेंगे।

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