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कमबख्त फिर से एक और वो आया

Pradeep singh " gwalya " 02 Sep 2023 कविताएँ समाजिक Pradeep singh gwalya is the composer of this poem main or wo 5322 0 Hindi :: हिंदी

शीर्षक :– मैं और वो

Word      –.  Meaning
मैं।            – एस्पिरेंट या विद्यार्थी
वो।           –भ्रष्ट विद्यार्थी
साहब       –आयोग या जो body exams कराती है,या उसमें                                                                 बैठे उच्चाधिकारी
लहजा      –सिलेबस




यह कविता मैने तब लिखी थी जब उत्तराखंड में लगातार competitive exams में धांधली हो रही थी । एस्पिरेंट्स हताश निराश थे अब चूंकि मैं भी एक विद्यार्थी हूं तो उनका दर्द समझ सकता था ।। तो इस पर मैंने 4 पंक्तियां लिखने की कोशिश की है । इस कविता की पंक्तियां कुछ इस प्रकार हैं ......



एक मैं और एक वो
दोनों चले करने तैयारी जीत की,
मैंने पूछा साहब से कि
कैसे होगी मिलन हमारी और प्रीत की।

साहब बोले–
अरे बाजार में नई किताबें आई हैं
जरा उन्हें पढ़ो तो,
तभी वो ने गड्ढी निकाल कर कहा
सर मुझसे याद नहीं होता
जरा इन्हें गिनो तो।

अब मैं करने लगा तैयारी
नए किताबों के खरीद की,
और वो,वो देखने लगा ख्वाब
पहली तनख्वाह के रसीद की।

अब फर्क ये हुआ 
मेरी और वो के सोच के योग में,
उसकी गई आकाश
और मेरी पाताल लोक में।

वो सोचे कि यह सब पाना 
कितना सरल,कितना आसान है,
उसे क्या पता मेहनत का
जो यहां पहले से धनवान है।

वहीं मैं, मैं देखूं मोटिवेशन वीडियो
तो लगे यह सब शेर की दहाड़ है,
पर आज भी वही सिलेबस लगे
जैसे नंदा का पहाड़ है।

आज वो का जीवन
सफल,प्रसिद्ध और भव्य है,
और मेरा अभी भी 
अपनी मंजिल पाना एक लक्ष्य है।

मैं कल्पना करता रहा 
उस गड्ढी के वजन की,
जिस पर छुपी थी हामी और मुस्कान
वो के सजन की।

उधर साहब बदलते रहे लहजा अपना,
इधर मैं निःशब्द रगड़ता रहा अपना सपना
सोचा इक दिन जब बादल छाएंगे,
दो चार सुकून की बूंदें हम पर भी तो आयेंगे।


कमबख्त फिर से एक और वो आया
इस बार दो गड्ढी निकाल के बोला
सर मुझसे भी याद नहीं होगा,
आप बताओ क्या आपका इसमें होगा।


                                      प्रदीप सिंह ‘ग्वल्या’

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