Sudha Chaudhary 24 Apr 2023 कविताएँ अन्य 7541 1 5 Hindi :: हिंदी
किसने देखा ताप में उर फिर सुगन्धित हो गया सुर । नवल निश्चल नयन अचम्भित भागते गिरते नहीं फिर । दिग दिशाएं झूमती सी कहां गई निर्मल हथेली राग रोगन है नहीं चिर । भोर बरसा में ही बीता रात्रि में अंधकार छाया बिजली यों का सस्वर कम्पन धूमिल मानो शीशे रेखा सुन रही अपनी कहानी विरह के वो गीत पुलकित इस धरा से हो गए तिर । सुधा चौधरी