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कुछ भी नहीं हाथ में फिर भी-तुम क्यों अकड़ कर बैठे हो

Ujjwal Kumar 12 Jun 2023 कविताएँ धार्मिक 8797 1 5 Hindi :: हिंदी

कुछ भी नहीं हाथ में फिर भी,
तुम क्यों अकड़ कर बैठे हो |

मिलें हैं चंद लम्हें यहां पर तुमको,
फिर भी क्यों अपनो से ऐठें हो |

भरोसा नहीं कि कब आ जाए मौत,
हर वक्त काल की सैया पर लेटे हो  |

क्यों करते हो गुमान कागज के नोटों पर,
जो अपनों से ही दुरियां बना कर बैठे हों |

कुछ नहीं जायेगा शमशान में साथ कभी ,
फिर क्यों स्वार्थ को बदन पे लपेटे हों |

बांट लो दर्द हर एक बदनसीब का तुम,
फिर क्यों जीवन को खुद तक समेटे हो ||

स्वरचित रचना
✍उज्ज्वल कुमार

Comments & Reviews

Ujjwal Kumar
Ujjwal Kumar Good

11 months ago

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