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मन कि उलझन-आज फिर मेरी जुवा लड़ खराने लगी है

सुजीत कुमार झा 16 Dec 2023 कविताएँ प्यार-महोब्बत Googal 3257 0 Hindi :: हिंदी

आज फिर मेरी जुवा लड़ खराने लगी है, उसकी यादे दिल को अंदर हि अंदर जलाने लगी है।धुंआ धुंआ सा मंजर आँखों पे छाने लगी है, लव भी उसी कि गीत गुनगुनाने लगी है।ना अब वो प्यास थी ना ओठो पर वो ओठो वाली मिठाश थी, वदन पर भी ना वो आधा-आधा लिवाश थी।कमरे मे भी ना कुछ खास थी ना कोई मेरे आस पास थी, ना किसी के होने की आभास।फिर भी उस मंजर के तिल-तिल की आभास थी, बस मन के अंदर हि अंदर दौड़ती वो कोई खास थी।कुछ पल मे ही महकने लगा तन वदन, अंदर ही अंदर चल रहा था वो पुराना पवन।मन कहता था तु बढ़ा दे कदम ,दिल कहता था मत कर जतन थोड़ा सोच ले फिर बढ़ाना कदम।आँखों के नीर मे बन रही उसकी तस्वीर मे, बंद परे मेरे तकदीर मे उसकी आभा अंदर ही अंदर डूबने लगी थी।पता नहीं क्यू डर सा मेरे मन को घुमाने लगी थी, फिर भी उसे पाने कि चाहत दिल को हिलाने लगी थी।इसी उलझन मे रात बित जाने लगी थी,सुबह कि किरण भी धीरे-धीरे पास आने लगी थी।

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