Shreyansh kumar jain 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद 48434 0 Hindi :: हिंदी
मानव जात से प्रभु यह कैसा घोर अपराध हुआ है, अंधियारे काले बादलों से प्रभु मेरा पुरा विश्व ढका है, शमशानों पर चिताओ का यह प्रभु केसा मेला लगा है, कोरोना के इस मंजर से प्रभु अब विश्व भी मरा पडा है, मानवता की इस देह को प्रभु आपने यह कैसा दण्ड दिया है।। हम से हुई थी गलती प्रभु हमने पाप भी अपना कबूल किया है, हम तो थे प्रभु नादान इसलिए हमने पाप नादानी में यह किया है, अब तक इस संकट का प्रभु आपने निवारण क्यों नहीं किया है, मानवता की इस देह से प्रभु अब तक क्यों ना यह कोरोना का बादल छटा है।। प्राण वायु भी अब नहीं धरा पर उस पर भी संकट खडा है, जवान पुत्र भी इस संकट में प्रभु माँ के चरणों में मरा पडा है, जीओ ओर जीने दो सबको जैन धर्म यह सिखलाता है, प्राणी मात्र में रहकर हमको अंहिसा का पाठ पढाता है।। अगर करते हम रक्षा जंगलों की तो आज ऑक्सीजन ना कम पडता, अगर दिखाते दया जानवरों पर तो आज यह दिन हमें देखने को ना मिलता, अब भी संभल जा प्राणी तु यह तो प्रभु का एक इशारा है, अगर अब भी किया तु पाप धरा पर तो मौत का खडा किनारा है ।। बुद्धि से मारे मानव तुम अब तो प्रभु से जरा डरो ना, प्रभु की भक्ति में लीन होकर पाप तुम अब कभी नहीं करो ना, प्रभु आप से विनती है हमारी अब तो हमको माफ करो ना, मानवता की इस देह से प्रभु इस कोरोना को साफ करो ना।।