Shreyansh kumar jain 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 5000 50887 1 5 Hindi :: हिंदी
हिन्दी भाषा नहीं मेरी माँ का यह एक स्वरूप है, नफरत भरी इस दुनिया में मोहब्बत का एक रूप है, समां बांधा है इसने मेरे दिल के हर एक कोने में, मुझे प्यार से जीवन जीना सिखाया है हिन्दी भाषा ने। कम्बखतो ओर गुलामी की भाषा को मै नहीं बोलता हूँ, मेरी माँ हिन्दी भाषा के आंचल से मैं दूर नहीं रहता हूँ, बहुत सोचा बहुत पाया मैंने मेरी मातृ भाषा के आंचल से, कम्बखतो की उस भाषा को ठूकराया हैं मेने हमेशा मेरे जीवन से। बहुत हूँ खुशनसीब बहुत मन्नत से मेने यह मेरी हिन्दी माँ का आंचल पाया है, मेरे पिछले जन्म के कुछ अच्छे कर्मों से मैने हिन्दी माँ के हिन्दूस्तान में जन्म पाया है, हिन्दी माँ के सानिध्य में रहकर मैंने इस दुनिया में नाम कमाया है, कम्बखत है कुछ लोग जो मेरी माँ हिन्दी भाषा को नहीं गाते हैं, हिन्दूस्तान में रहकर भी मेरी माँ रूपी हिन्दी भाषा को नहीं चाहते हैं । मेरी इस भाषा के तहखाने में इबादत के ना जाने कितने रंग बसते है, मगर फिर भी मेरी माँ के आंचल में नफरत के बीज कभी नहीं पनपते है, सबको गले लगाकर माँ ने अपने दिल में बसाया है, ना जाने मोहब्बत की कितनी गजल ,कविता, नज्म हमें माँ हिन्दी भाषा ने बताया है ।
1 year ago