Ruby Gangwar 15 Feb 2024 कविताएँ समाजिक 20027 0 Hindi :: हिंदी
न छोड़ी थी उम्मीद मैंने न सब्र मैंने छोड़ा था , सोचती थी जीत जाऊंगी मैं ये न किस्मत के ऊपर छोड़ा था, उम्र हो चली थी मंजिल न अभी मिली थी, किस्मत भी साथ छोड़ चली थी, सोचा था छोड़ दूंगी दुनिया ये बस दिल में कश्मकश थी , फिर भी एक उम्मीद दिल में जग रही थी, भगवान ने न साथ छोड़ा था बस यही एक खुशी थी, यही मेरी व्यथा है यही मेरी कहानी थी।।