Ujjwal Kumar 18 Jun 2023 कविताएँ समाजिक पिता वो साया है 8668 0 Hindi :: हिंदी
पिता वो साया है सर पर जिसके रहते दुखो की बूंद भी हमे छू नही पाती है फिर चाहे वो खुद कितनी दुखो की बारिश झेल कर आता हो। पिता वो सहारा है परिवार का जो हमे हमेशा संभालता है घर को, चाहे वो खुद अंदर से कितना भी टूटा हो। पिता वो इंसान है जो हमेशा सबके लिए कमाता है शायद इसलिए वो खुद के लिए कमाना भूल जाता हो। पिता वो है जो हर त्यौहार पर सबके चेहरों की हंसी खरीदकर लाता है फिर चाहे वो हंसी खरीदने की खातिर वो खुद की खुशी बेचकर आता हो। पिता वो है जो बच्चो को चलते हुए देखकर उनकी उड़ान के सपने सजाता है और उन सपनो को पूरा करने की खातिर अपनी हर ख्वाहिशों को दबाता हो। पिता तो बस पिता होता है, पिता से बढ़कर कोई नही होता है। 🖊स्वरचित रचना ✍उज्ज्वल कुमार