संदीप कुमार सिंह 06 May 2024 कविताएँ समाजिक मेरी कविता आप सब लोगों का दिल जीत लेगी. 2311 1 5 Hindi :: हिंदी
है बहुत प्रत्यक्ष पर दिखता नहीं है | कर्म है प्रारब्ध पर लिखता नहीं है | काम भी चलता नहीं उसके बिना | वाम हो यह काल या फिर दाहिना | अस्मिता प्रतिपल सहेज चला करे | निडर वह पर मान करके डरा करे | उसके करद्वय में सभी की जान है | बूझिये तो यह प्राण का ही मान है | सारथी प्रतिपल हमारे साथ चलता | हाथ में ले हाथ वह आश्वस्ति करता | हिय उसी से उपज पाती है निडरता | वही होकर प्राणमय हृद् शून्य भरता | उसके किये संसार सारा कल्पनामय | हर कथन हर व्याख्यायें जल्पनामय | पर वही बन निरर्थकता शून्य भरती | अनस्तित्व उधार लेकर सृष्टि गढ़ती | मधुर स्मृति प्रथम पावन मिलन की | हृदय अंतस् प्रीति के स्फुरण की | तप्त स्नेहिल संस्पर्श से संचरण की | संकोचमय अव्यक्त से आवरण की | साहचर्य वह जो मिला प्रारब्ध बन | किया सुतनु श्लथ मगर दे तृप्त मन | उर संजोये ही रहे सच स्वप्नवत् वह | शेष कब प्रारब्ध अनुसांगिक विरह | पुनः दोहरायेंगे अब हम स्वयम् को | तृप्ति संयोगित करें विधि नियम को | है परम संतुष्टि जब हर आचमन को | क्यों न हो अमरत्व ज्ञापित नमन को | खुद कोई ऋण स्वयम् के जैसे हैं हम | दे स्वयम् की अस्मिता खुद न्यूनतम् | वक्त से जज़्बात दिल के कह गये हम | बनके यादों के मसीहा से रह गये हम | (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️
1 week ago
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....