Jyoti yadav 06 Aug 2023 कविताएँ समाजिक बदलती दौर में मानवता कहीं छूट रही है 7371 0 Hindi :: हिंदी
🌹🌹🌹🌹मानवता कहीं छुट रही है डोर रिश्तों की अब टूट रहीं हैं हर किसी को 💯💯अपनी अपनी पड़ी है समझ नहीं आता कैसी घड़ी है🙏🙏🙏 🥀🥀🥀छोड़ दया, धर्म ,रिति ,रिवाज ,संस्कारों को दौड़ते रहना पैसे के पिछे 🥀🥀🥀 क्या यही आधुनिकता है समझाओ जरा बदलते दौर की। क्या यही सफलता है🥀🥀🥀 बदलना जरूरी है माना👌👌 पर क्या इस तरह का बदलाव💐 💯जहां ताना बाना और इस तरह का खिंचाव सुनता नहीं कोई किसी का सुझाव क्या यही है बदलते दौर का लगाव💐💐💐💐 सोच बदलो उम्मीद बदलो🙏🙏🙏 तरक्की के लिए तरकीब बदलो मानवता ना बदलो तुम रखो ख्याल एक दुजे का मुहब्बत से बदल दो फिजा बदलते दौर की जन्नत की 🌹🌹🌹🌹🙏 ( ज्योति यादव के कलम से )✍️ ( कोटिसा विक्रमपुर , सैदपुर गाजीपुर 🙏🌹)