Alfaaz Hassan 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 46989 0 Hindi :: हिंदी
सूरज की पहली किरण थी जो आज क्यो वो घना अधंका र हुई जो पंख लगाकर उङती थी क्यो प खं कटी सी शिकार हुई बचपन की बगिया छोड़ के मै ये किस जगंल चलीआई थी जहाँ रोते बिलखते थे दिन रात मेरे मेरे छोटे छोटे ख्वाबो की भी फुलवारी मुरझाई थी इस मुरझाई फुलवारी में मै पत्थर सी चट्टान हुई। जो पंख लगाकर उङ ती थी क्यो प खं कटी सी शिकार हुई? मैं छोड़ आई बाबुल का नगर ये जाने किस अनजान डगर जहाँ लोग सभी बेगाने थे ना जाने ना पहचाने थे इन अनजाने से लोगों मे धुंधली मेरी पहचान हुई, जो पंख लगाकर उङती थी क्यो प खं कटी सी शिकार हुई? ये कैसा अधंरा कोना था जहाँ मैंने उम्र गुजारी थी ईक मुजरिम की ही तरह क्यो मेरी बीती जिंदगी सारी थी थी औरत मै था कसूर मेरा और यही मेरी लाचारी थी सह-सहके लाखों दर्द आज मै दर्दभरी दास्ताँ न हुई, जो पंख लगाकर उङती थी क्यो प खं कटी सी शिकार हुई,?