Jyoti yadav 16 Aug 2023 कविताएँ समाजिक क्या जीवन में मंगल है 6836 0 Hindi :: हिंदी
नींद भी अधुरी ख्वाब भी अधुरे रेस लगी है जोरों की यहां हर कोई व्यस्त हैं खुद में कैसे पुछे खैरियत गैरों की सुबह निकलते हैं रोटी कमाने को साम तक थका हारा लौट आते हैं चलता है अगले दिन भी यही सिलसिला इससे ज्यादा कहां कुछ कर पाते हैं बहुत मुश्किल होती आती रोज नई बाधाएं हैं एक को दुर करूं तो दुसरी रोकती राहें हैं डरता है मन मेरा डरती निगाहें है इक तरफ कुआं इक तरफ खाई दोराहे है अमन चैन शान्ति का कहीं निशान तक नहीं इस भीड़ भाड़ वाली जगह में अपनी पहचान तक नहीं फिर भी ना जाने क्यों भाग रही हूं वर्षों से जाग रही हूं सुरज हवा पानी सब कुछ है फिर भी ना जाने क्यों सांसों में घुटन है मंगल की खोज में मंगल तक पहुंच गये लोग पर क्या जीवन में मंगल है पुछता मन है ज्योति यादव के कलम से ✍️