Suraj pandit 30 Mar 2023 कविताएँ बाल-साहित्य सरस्वती मां 15163 0 Hindi :: हिंदी
बालक था मैं उस समय , आन्ध्कार मे ढका था जीवन । प्रकाश लेश मात्र ना था , खो रहा था श्वाशन । आन्ध्कार मे बैठ , उजाला कि कल्पना करता । घन-घौर सी बादल मे , सोपन देखा करता । एक स्नेह जुड़ी विधा से , सोपन, उजाला दिखा। आन्ध्कार सी नगर मे , जलता, दीपक देखा। महान है, उसकी दिव्यता । जिसने, कलम कि कहानी बताई। एक स्हािई कि बूंद से । जीवन मे, संगीत रचाई। किया कहुँ, उसकी बातें । हर पल गाथा गाता हूँ। उसकी याद से भूखे-प्यासे , धरती मे सो जाता हूँ । ज्ञान, गंगा कि धारा हो, माँ। मैं एक भिख छुक सा। सदा बूंदो कि वर्षा हो, मैं तेरा बालक हूँ माँ। माघ शुल्क कि पंचमी मे , एक नविन रचना कर सका हूँ । कृपा है तेरी माँ , आपकी उपस्थित को मेहसूस कर सका हूँ। ---------------सूरज पंडित