virendra kumar dewangan 23 Aug 2023 आलेख राजनितिक Political 6753 0 Hindi :: हिंदी
जब विपक्षी दल ईवीएम पर अर्नगल बातें कर चुनाव आयोग को कटधरे में खड़ा करने लगी थी, तब आयोग ने दिन मुकर्रर कर विपक्षी पार्टियों को आहूत किया था कि वे सबूत पेश कर साबित करेें कि गड़बड़ी कहां हुई है। गौरतलब है कि आरोप लगानेवाली एक भी पार्टीं आयोग के समक्ष नहीं पहुंची। निश्चित था कि यदि वे पहुंचती, तो उनका आरोप मिथ्या साबित होता। वे बाद में आरोप लगाने के काबिल नहीं रहतीं। विदित हो कि भारत इलेक्ट्रानिक लिमिटेड व ईसीआईएल द्वारा निर्मित ईवीएम दुनिया में बेजोड़ हैं। यह विशुद्ध रूप से मेड इन इंडिया है। ये मशीनें आफलाइन काम करती है, जिसका हैकिंग नहीं किया जा सकता। निर्वाचन आयोग का दावा है कि ऐसी मशीनें किसी देश में नहीं बनी हैं। आयोग के अधिकारियों का कहना है कि अमेरिका के जिन तथाकथित प्राध्यापकांे ने इस संबंध में बावेला मचाया है, वे मशीन का इलेक्ट्रानिक उपकरण जानने के लिए लालायित थे। वे इसे हासिल करना चाहते थे। सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा चलने के बावजूद देशी मशीन को विदेशियों के हाथों सौंपना, चुनाव आयोग को गंवारा न हुआ। आयोग का अभिमत था कि इससे सीक्रेट लीक होने और सर्किट विदेश पहुंचने का अंदेशा हो जाता। अवगत हो कि किसी एक पार्टी की पहुंच ईवीएम मशीन तक हो नहीं सकती। ये मशीनें विभिन्न प्रदेशों में आयोग से जुड़े प्रशासनिक अधिकारियों की देखरेख में रहती है। रखरखाव में इनका राजनीतिक दलों से कोई लेना-देना नहीं रहता। गौरतलब है कि मशीनें बनाने के दरमियान इनकी चिप में गड़बड़ी करके भी कुछ नहीं हासिल होता। जहां चुनाव होता है, वहां नामांकन वापसी के उपरांत अक्षरक्रम से प्रत्याशी का क्रम निश्चित किया जाता है। यह नामुमकिन है कि हर जगह पर पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें या छठवें क्रम पर एक ही दल का उम्मीदवार हो। यह मतदान के पंद्रह दिन पहले नियत होता है। तब तक मशीन पुलिस-प्रशासन की सुरक्षा में सात तालों में कैद रहता है। मतदान के दिन पीठासीन अधिकारी के नेतृत्व में ईवीएम मशीनों पर काम लिया जाता है। इसमे ंमतदान के पहले व पश्चात, जहां पीठासीन अधिकारी का सील लगता है, वहीं मतदान अभिकर्ताओं का, जो राजनीतिक दलों से जुड़े रहते हैं, सील लगाया जाता है। चुनाव के बाद ईवीएम जिला या तहसील मुख्यालय पुलिस फोर्स की अभिरक्षा में रखा जाता है, जहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता। जब गणना होती है, तब जिम्मेदार अधिकारी की सुरक्षा में गणना कक्ष लाया जाता है। इसे गणना कक्ष में प्रत्याशियों के प्रतिनिधियोें के समक्ष गणनाधिकारी द्वारा खोला और गणना किया जाता है। यह सारी प्रक्रिया सीसीटीवी में कैद रहता है, जिसे वक्त जरूरत देखा जा सकता है। धन्य हैं वे लोग, जो ईवीएम की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करते हैं। हां, कभी-कभी सुनने में आता है कि इसमें बटन दबाने पर वोट किसी दूसरे दल को चला जाता है, जो तकनीकी त्रुटि का परिचायक हो सकता है। पर ऐसी त्रुटि हर मशीन में नहीं होती। इसे ब्लूटूथ के जरिए किसी फोन जैसी बाहरी डिवाइस से जोड़कर नियंत्रित भी नहीं किया जा सकता। इसी के चलते आयेाग ने वीवीपैट (वोटर वेरिफिकेशन पेपर आडिट टैªल) लगी मशीनों का आदेश दिया है, जो आयोग के गोदामों में पहुंचा। गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद आयोग ने शिकायत करने पर ईवीएम के साथ वीवीपैट का मिलान किया, तो मतदान सौ प्रतिशत सही पाया, इससे दूध का दूघ और पानी का पानी हो गया। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान गड़बड़ियों की 780 शिकायतें मिली हैं, जिसकी वीडियो फार्मेट में जांच की गई, लेकिन इक्का-दुक्का ही मशीनरी संबंधी गड़बड़ी पाई गई। अब, तो चुनाव आयोग ने यह फैसला लिया है कि मतदान के एक धंटा पहले मतदान कक्ष में 50 माकपोल होगा, जो ईवीएम की विश्वसनायता को प्रमाणित करेगा और विभिन्न चुनावों में किया भी जा रहा है। --00--