संदीप कुमार सिंह 03 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4522 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) आमद बढ़िया है हुई, सभी हुए गुलजार। बदले बदले लग रहे,अपना ही परिवार।। बदले बदले लग रहे,अल्हड़ सी यह रात। तारे भी आकाश में,करते हैं यह बात।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....