Jitendra Sharma 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक जितेंन्द शर्मा की रचनाएं, रोचक कहानियां, प्यारी कविताएं, 6633 0 Hindi :: हिंदी
बचपन का सपना सजाने चला हूं। मैं एक घर अब बनाने चला हूं।। प्यार की ईंटों से नींव बनाने को, अपनत्व के गारे से जोड लगाने को। आंधी और तूफान तोड़ ना पायेगा, विश्वास की दीवारें ऊंचा उठाने को। आदर्शों की छत लगाने चला हूं। मैं एक घर अब बनाने चला हूं। छोटा सा आंगन, आंगन में छैया हो, घुटवन चलते कृष्ण कन्हैया हो। दाऊ निहारत प्यारे अनुज को, बलि बलि जाती यशोदा मैया हो। ये सारे चित्र सजाने चला हूं, मैं एक घर अब बनाने चला हूं। प्रेम स्नेह रहे, हास परिहास रहे, मिलजुल रहे सभी, लक्ष्मी जी वास रहे। विघ्न बाधा हरने को, विनायक विराजे घर, सबका सम्मान रहे, सब में विश्वास रहे। अब इस घर को बसाने चला हूं। मैं एक घर अब बनाने चला हूं।