DINESH KUMAR KEER 24 May 2023 कविताएँ समाजिक 5315 0 Hindi :: हिंदी
माना कि जिंदगी कभी-कभी बहुत इम्तहान लेती है, पर कुछ अच्छे के लिए आगे वो तैयार भी तो करती है, जीवन में कुछ पल के दुख के लिए क्या हम वो सारी खुशियां भूल जाए, जो हमारे अपनो ने दी भगवान ने दी एक अच्छा इंसान बनाकर बहुत मुश्किल होता है, इन्सान का इंसान बने रहना बाकी तो कब समय परिवर्तित हो जाए कोई नहीं कह सकता है, मेरे अस्तित्व का सार ही मेरी "सादगी" है, झूठे आवरण से लड़ाई मेरी हर बार की है, जो दिया भगवान ने स्वीकारा और संभाला उसे, ना रीझे मन कभी चकाचौंध पर यही प्रार्थना सुबह "शाम" की है जो पाया "नसीब" से उसे ही सजाना संजोना, यह "इम्तिहान" की घड़ी मेरी हर रोज की है...