Mohan pathak 30 Mar 2023 ग़ज़ल समाजिक कर्तव्य बोध 34235 0 Hindi :: हिंदी
ग़ज़ल नजर से नजर मिला नहीं सकते, जब खुद की नजरों से गिर गए। झूठी शान शौकत की जादूगरी से, बजूद अपना ही मिटाते चले गए। डगमगाए नहीं डग कर्तव्य पथ से, दौलत ठुकरा देते हैं प्यार के लिए। भटक से गए हैं इस भूलभुलैया में, जरूरी हो गयी दौलत जिसके लिए। आस पड़ोस,गांव मुहल्ला,कस्बा, जिधर देखो रिश्ते मिटते नजर आए। एक एक को देख देख कर यहां सब, आंखों आंखों में ही इशारे करते गए। हम हाथ पर हाथ धरे दर्शक बने रहे, चंद सितारे आकर ये खेल खेल गए। चांद तारों की रोशनी में तलाशते रहे, वे सूरज को दोष देकर निकल लिए ईमान बेच कर भी चंद सिक्के पाना, अहसास कराते कुछ वायदे लिए।