Rani Devi 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक साँची धूप काव्य, वक़्त का पहिया, गणतंत्र दिवस 13932 0 Hindi :: हिंदी
परिचय को मोहताज फाल्गुन में आता हूँ धरा पे यौवन लाता हूँ तू मुझे नहीं जानता अपना नहीं मानता फूल बनकर आता हूँ कलियों में गूँथा जाता हूँ परिचय बस इतना कि मैं बसंत हूँ सरसों तब लहराती है पीला आँचल जब वो पाती है प्रकृति का मैं श्रृंगार हूँ सेब, पलम, आड़ू का मैं अलंकार हूँ हर पौधे को तब मैं भाता हूँ रंग बिरंगे परिधान में जब आता हूँ परिचय बस इतना कि मैं बसंत हूँ सिहांसन जब मेरा सजता है संगीत धरा पे बजता है कोयल भंवरे गायन करते हैं विहग सब उसमें स्वर भरते हैं सूखे तरू पे हरियाली जब आती कई रंगों से शाखा लद जाती है परिचय बस इतना कि मैं बसंत हूँ सब ऋतुओं का मैं राजा हूँ बसंत नाम से नवाजा हूँ नभ में विहग किलकारियां भरते हैं अभिनंदन ऋतुराज का जब करते हैं झूम झूम के तितली जब स्वागत करती है धरा भी दुल्हन रूप तब धरती है परिचय बस इतना कि मैं बसंत हूँ दुःख बस इतना तूने नाता तोड़ा है भू को रहने काबिल न छोड़ा है प्रकृति अपना सब कुछ लुटाती है विनाश ही तो बदले में पाती है प्रकृति तो तेरी सहचरी है क्या ये बात तुमने न पढ़ी है परिचय बस इतना कि मैं बसंत हूँ हर्ष उल्लास साथ मैं लाता हूँ दूर देशों तक सुंगध फैलाता हूँ जन जन में अनुराग भरता हूँ पाषाण हृदय को भी रोमांचित करता हूँ फ़ैशन के गड्डे में गिरा समाज है तभी तो बसंत अपने परिचय को मोहताज है परिचय बस इतना कि मैं बसंत हूँ
Hindi Lecturer in Government school GSSS Karoa Himachal Pradesh....