Mukesh Namdev 23 Nov 2023 शायरी समाजिक मंज़ूरी,मजबूरी,मुस्कुराहट,ज़िस्म 11374 0 Hindi :: हिंदी
"मंज़ूरी" "हमें तुम में तुम्हारी मजबूरी नज़र आती है,तुम्हारी मुस्कुराहट में तुम्हारी मजबूरी नज़र आती है,जब भी तुम्हारे ज़िस्म को छूना चाहता हूँ,तुम्हारी निगाहों में एक मजबूरी नज़र आती है,और एक पल के बाद फिर तुम्हारी मजबूरी मुस्कुराहट में बदल कर ज़िस्म के हर एक कोने को छूने की मंज़ूरी देती है,ये मजबूरी ही तो है,जो मंज़ूरी को भी मुस्कुराहट में बदल देती है" #Mukesh Namdev