Raj Ashok 27 Apr 2023 कविताएँ हास्य-व्यंग इश्क ओर मुशक 6881 0 Hindi :: हिंदी
छोड़ चुके थे। अब शाही अन्दाज़ मे जीना । नजाने ऐसा क्या बदला ? के आईने को आइना दिखाने मे लगे थे। जैसे, सब एक सच को छुपाने मे लगे थे। अपने बेचैन दिल से हारे। थे, सब नशीब का मारे लगे थे ।तकदीर , का लिखा मिटाने । पर जहाँ मे होता वही है। जो मंजुरे खुदा होता है। आ ही, जाता है। सच जुबा पे चाहे रखो इस, जीतने पर्दो मे कभी नजर कह जाती है। तो कभी घड़कन नजाने क्यो, ये दुनियाँ कोई, राज नहीं छुपा सकती । इसीलिए तो कहते है । कभी इश्क़ और मुशक कभी छुपाऐ नहीं । छुपते ......?