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सारे शिकवे गिले भूल जाना

संदीप कुमार सिंह 20 Jun 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5316 0 Hindi :: हिंदी

एक हसीन खुद्दार इंसान हूं मैं,
मानवता का  जागता प्रमाण हूं मैं।

जन्म जो धरा पर मैने लिया हूं,
स्वर्ग की कमाना लिए गुमान हूं मैं।

मिटती आस्था विश्वास को जगाना है,
सबके दिलों में उमंग का पहचान हूं मैं।

सारे शिकवे गिले भूल जाना होगा,
प्यार भरा सौगात का कद्रदान हूं मैं।

तन्हा जो कोई भी इन्सान मिले,
ऐसे में महफ़िल भरी जान हूं मैं।

ख़्वाब और ख़्याल को सच कर दूं,
फलक जैसी ऊंचाई का अरमान हूं मैं।

गम के बादल को सर्वदा ही नाश करता हूं,
हसीन जिन्दगी का आन बान शान हूं मैं।

रिश्तों के डोर को सम्हाले रखना है,
संबंध  को मधुर रखने का सम्मान हूं मैं।
              
जिन्दगी संदीप जिंदादिली का नाम है,
नफ़रत के नाम से अंजान हूं मैं।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह ✍🏼
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा) बिहार

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