Anany shukla 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक जल ही जीवन है 100097 0 Hindi :: हिंदी
जल ही जीवन है, मैंने कभी पड़ा था पर अफसोस जल की खोज में आज मैं स्वयं खड़ा था जल बिन सूख रही थी जिह्वा सूख रहे थे सब अंग दृश्य देखकर सामने का मैं रह गया दंग कभी हुआ करता यहां पर एक ताल था अब यहां गगनचुंबी इमारतों का एक जाल था मैंने सोचा क्या विकास की दौड़ में हम कहीं दूर निकल गए पर सच्चाई दूर कहीं हम तो पहले से भी पिछड़ गए