Uma mittal 30 Mar 2023 आलेख धार्मिक श्री गणेश भगवान जी ,श्री भगवान गणेश का मंदिर 34016 0 Hindi :: हिंदी
आज श्री गणेश भगवान का जन्मदिन है | सभी देवी देवताओं में सर्वप्रथम पूजे जाने वाले भगवान श्री गणेश को कौन नहीं जानता | श्री गणेश भगवान जी भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं |श्री गणेश भगवान की पूजा सभी देवी देवताओं से पहले की जाती है , नहीं तो किसी भी देवी देवता की पूजा का फल नहीं मिलता | ऐसा भगवान गणेश को माता पार्वती के आग्रह पर सभी देवी देवताओं से वरदान प्राप्त है | भगवान गणेश का मंदिर तो हर जगह छोटे, बड़े शहर, गांव, कस्बे ,देश-विदेश में स्थित है, इनमें से एक है सिद्धिविनायक मंदिर मुंबई |यहां दूर-दूर से लोग भगवान के दर्शन करने आते हैं और मुंह मांगी मुराद बड़ी शीघ्रता से पाते हैं| यह मंदिर काफी सुंदर और भव्य है| परंतु यहां भीड़ बहुत होने के कारण दर्शन करने में थोड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है |श्री गणेश भगवान की जितनी प्रशंसा की जाए ,उतनी कम है |कोई भी शुभ कार्य हो तो पहला निमंत्रण पत्र श्री गणेश जी को ही जाता है क्योंकि कहा जाता है, श्री गणेश जी हर कार्य को बिना किसी विघ्न आए, संपूर्ण करते हैं | तभी इनको विघ्नहर्ता अर्थात बाधाओं का नाश करने वाले भी कहा जाता है | गणेश जी की दो पत्नियां जिनके नाम रिद्धि और सिद्धि हैं और उनके दो पुत्र शुभ और लाभ है, गणेश जी की पूजा करने से रिद्धि, सिद्धि ,शुभ ,लाभ सभी अपने आप प्राप्त हो जाते हैं| श्री गणेश भगवान को मोदक बहुत प्रिय हैं |इन्हें बुद्धि का देवता कहा जाता है |गणेश भगवान सचमुच बहुत बुद्धिमान, विवेकशील, माता- पिता के आज्ञाकारी, दयालु, हर कार्य में निपुण है | श्री गणेश भगवान जी बुद्धि और विद्या के देवता के साथ साथ एक महान लेखक भी हैं | एक बार की बात है कि श्री वेदव्यास जी को महाभारत, पुराण, वेद, उपनिषद को काव्य और छंद में लिखने का आदेश हुआ ,ताकि यह ज्ञान लुप्त ना हो जाए | तब श्री वेदव्यास जी भगवान शिव जी के पास गए और उन्होंने भगवान से कहा कि” मुझे कोई ऐसा बुद्धिमान मिल जाए ,जो मेरे बोले हुए काव्य और छंद को शीघ्रता से समझ- समझ कर लिख पाए ,ताकि कोई त्रुटि भी ना रह पाए ,क्योंकि अगर मैं रुकूंगा तो कहीं कोई श्लोक भूल ना जाऊं , भोलेनाथ आप मेरी सहायता करें “| तब भगवान शिव जी ने उसी समय अपने पुत्र गणेश को बुलाया और गणेश जी को श्री वेदव्यास जी के साथ लेखन क्रिया के लिए भेज दिया | श्री गणेश जी तुरंत अपने वाहन मूषक के साथ श्री वेदव्यास जी के साथ गए और लिखने लगे | वेदव्यास जी शीघ्रता से छंद बोलते गए और गणेश जी शीघ्रता से लिखते गए और लिखते लिखते उनकी कलम ही समाप्त हो गई | तब उन्होंने अपना एक दांत जल्दी से निकाल कर उसे ही स्याही में डुबो कर कलम बना ली और बिना रुके सारी रचना कार्य पूरा किया | तभी से श्री गणेश भगवान को एकदंत भी कहा जाने लगा | श्री वेदव्यास जी गणेश जी की प्रतिभा , बुद्धिमानी , त्याग, धैर्य को देखकर आश्चर्यचकित और प्रसन्न हो गए | श्री गणेश जी ने अपनी बुद्धिमानी से अपने माता पिता का गौरव और भी बढ़ाया | ऐसे भगवान को हमारा कोटि-कोटि प्रणाम | उमा मित्तल राजपुरा टाउन (पंजाब)