संदीप कुमार सिंह 21 Oct 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 3782 0 Hindi :: हिंदी
#विधा:_दोहा छंद #"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत" अपनों के ही साथ है,माँ का प्यार दुलार। सुन ले मेरा अर्ज अब,जीवन कर गुलजार।। कभी कभी नीरस लगे,मिलती नहीं बहार। माँ का प्यार दुलार हो,तो हरदम हो प्यार।। माँ का प्यार दुलार लूं,करूं पाक जो कर्म। भेद सके बाधा नहीं,रहे साथ में धर्म।। आए खाली हाथ से,बढ़िया नहीं दिमाग। माँ के प्यार दुलार से,बना रहे अनुराग।। कुछ दिन की है चाँदनी,कर लूं मैं कुछ उपकार। जिससे कायम नित रहे,माँ का प्यार दुलार।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....