akhilesh Shrivastava 19 Jun 2023 कविताएँ हास्य-व्यंग बढ़ती उम्र में अक्सर सुनाई देने वाली बातें 8607 0 Hindi :: हिंदी
*कविता* *मुझको बुड्ढा बोल रहे हो* देख सफेदी बालों की तुम मुझको बुड्ढा बोल रहे हो देख के पोपले गालों को तुम दादाजी बोल रहे हो।। पुराना सामान समझकर तुम इसे कम तौल रहे हो।। पांच किलो के इस बंदे को एक पाव का बोल रहे हो।। बाल थे राजेश खन्ना जैसे चांद मेरी क्यों देख रहे हो देख मुझे धोती कुर्ता में गुरु कुर्ता को भूल रहे हो। हम थे जब स्मार्ट हमें भी लड़कियां देखा करतीं थीं हमसे बातें करने को वो मौका ढूंढा करतीं थीं।। गाल हमारे रहे गुलाबी जुल्फें काली काली थीं मोहल्ले की गलियों में अपनी छवि निराली थी ।। हूं बसंत ऋतुओं का राजा मुझको पतझण समक्ष रहे हो इस गुलाब के फूल को तुम क्यों गेंदें का समझ रहे हो ।। इस पुराने जितेन्द्र को तुम ए के हंगल समझ रहे हो इस जंगल के शेर को तुम सियार क्यों समझ रहे हो।। एक समय था हमारा भी हमने भी यौवन देखा है खूब करी है मौज -मस्ती और स्वर्णिम युग देखा है।।। देख गाल की झुर्रियों को तुम बुड्ढा क्यों बोल रहे हो इस बुलंद इमारत को तुम खंडहर क्यों बोल रहे हो।। रचयिता ---अखिलेश श्रीवास्तव जबलपुर
I am Advocate at jabalpur Madhaya Pradesh. I am interested in sahity and culture and also writing k...